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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (4)बिल्ली और दूध की रखवाली ( मुहावरों की दुनिया )


शीर्षक = बिल्ली और दूध की रखवाली



अगला दिन, आशीष घर पर ही नाश्ता कर अस्पताल चला गया था, अपने केबिन में बैठा ही था की उसका मोबाइल बज उठा

थोड़ी देर बजा छोड़ देने के बाद, आशीष ने फ़ोन उठाया और बोला " तो आपको याद आ गयी, अपने पति की डॉक्टर राधिका "

"हमें तो याद आ गयी, लेकिन शायद आपको तो वो भी नही आयी, लगता है मेरे जाने की ख़ुशी बहुत है आपको, इसलिए ना कोई फ़ोन ना मैसेज " राधिका ने कहा


"लगता है, आपको गांव कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया है, जो आप अपने पति को ही भूल गयी, और माँ केसी है तुम दोनों कैसे हो " आशीष ने पूछा


"माँ भी ठीक है और हम दोनों भी, पापा का नही पूछोगे, वो कैसे है " राधिका ने कहा


"आशीष ये सुन खामोश हो गया और बात को घुमाने की कोशिश करने लगा,

"क्या हुआ आशीष, मैंने कुछ पूछा तुमने जवाब नही दिया?" राधिका ने कहा

नही नही, ऐसी बात नही है, तुमने बताया ना की सब ठीक है, तो पापा भी ठीक होंगे, वैसे भी गांव में है तो ठीक ही होंगे,अपनों के साथ है " आशीष ने कहा

"उन अपनों में एक तुम्हारा नाम भी तो है, क्या तुम उनके अपने नही हो, क्या वो तुम्हे अपने पास देखना नही चाहते होंगे?" राधिका ने कहा 



राधिका तुम जानती तो हो सब कुछ मेरे और पापा के बारे में, बार बार क्यू तुम मुझे वही सब कुछ तुम्हे बताने और समझाने पर विवश करती हो, मैं नही रहना चाहता हूँ उस गांव में, मैंने दिन रात एक करके इस लिए डॉक्टर की पढ़ाई नही की थी कि मैं पापा के कहने पर गांव का हकीम बन कर रह जाऊ, तुम्हे कुछ और बात करनी है तो करो नही तो मैं फ़ोन रख रहा हूँ, तुम लोग भी बस अब आ जाओ, तुम्हारी और मानव कि तबीयत ख़राब हो जाएगी, वहाँ का वातावरण तुम्हारे लिए अनूकूल नही है " आशीष ने कहा


"ठीक है, ठीक है आप दोनों बाप बेटे जाने, मुझे इसमें नही पड़ना, मेरा काम आपको समझाना था, और हाँ माँ से बात कर लेना, मेरी और मानव कि चिंता मत करे हमें गांव और यहाँ का वातावरण बेहद अच्छा लग रहा है, मैं तो कह रही हूँ आप भी आ जाए, कब तक अकेले रहेंगे वहाँ, इसी बहाने थोड़ा आराम भी मिल जाएगा " राधिका ने कहा


"मैं नही आ रहा, तुम लोग रहो, ज़ब दिल भर जाए तब आ जाना, मैं माँ को फ़ोन कर लूँगा समय मिलते ही, उनसे कहना अपना ख्याल रखे " आशीष ने कहा


राधिका और आशीष ने आपस में काफ़ी बाते की, फ़ोन रखने के बाद आशीष के मन में गांव के विचार आने लगे, लेकिन उसने उस तरफ ध्यान नही दिया और काम में लग गया


ईश्वर ही तुम्हे यहाँ लाएंगे, मैं तो ये काम नही कर सकती, देखना  तुम यहां जरूर आओगे, तुम्हारे और पापा के बीच जो भी है सब ठीक हो जाएगा, राधिका ने अपने आप से कहा और मानव को आवाज़ देती हुयी बाहर चली गयी


मानव बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था, उसे इस तरह बच्चों के साथ खेलता देख उसे ख़ुशी हो रही थी उसे इस तरह देख उसकी सास, सुष्मा जी वहाँ आती और उसे बैठने का कहती


"क्या हुआ बेटा? कुछ हुआ क्या?" सुष्मा जी ने पूछा

"नही माँ, बस देख रही हूँ, मानव कितना खुश है यहाँ पर आकर, शहर और अपने स्कूल के दोस्तों को तो भूल ही गया है ये, और तो और अपने पापा से भी बात नही कर रहा है " राधिका ने कहा

"हाँ, ये तो है, खुश तो बहुत है और तो और इसके दादा भी बेहद खुश है, इसके आने पर ज़ब ज़ब मैं इनको, अपने पोते के साथ खेलता देखती हूँ तो ऐसा लगता है  कि मानो इस आँगन में एक बार फिर आशीष खेल रहा है, उसका बचपन फिर से मेरी आँखों के सामने उजागर हो रहा हो, वक़्त कितनी तेजी से गुज़र जाता है पता ही नही चलता है, कब ऊँगली पकड़ कर चलना सीखने वाले बच्चें कब ऊँगली छुड़ा कर दूर चले जाते है, पता ही नही चलता  " सुष्मा जी ने कहा


राधिका उनका हाल - ए - दिल अच्छे से समझ सकती थी, उन्हें अपने बेटे की याद आ रही थी, राधिका से उनकी ये हालत नही देखी जा रही थी इसलिए वो उनका ध्यान हटाने के लिए सर दर्द का बहाना करती है


जिसे देख सुष्मा जी कहती है " मैं अभी अंदर से सरसों का तेल लाकर सर की मालिश करती हूँ, देखना सर का दर्द छू हो जाएगा, तू बैठ यही "


राधिका ने मना करना चाहा लेकिन वो ज़ब तक तेल ले आयी और फिर उन्होंने उसके बालों में तेल लगा दिया

दीनदयाल जी भी खेत से आ गए थे और मानव उनके साथ खेलने लग गया था,


सब लोग बेहद खुश थे, दोपहर का खाना खा कर सब विश्राम करने चले जाते है, मानव भी दीनदयाल जी के पास जाकर उनसे मुहावरों की दुनिया में लिखी जा रही उसके द्वारा कहानियों को लिखने की बात करता है, और अपने दादा को वो परचा देकर अगले मुहावरें को कहानी का रूप देकर उसे समझाने को कहता है 


दीन दयाल जी उस पर्चे में लिखें अगले मुहावरें की और नज़र दौड़ाते है जो की इस प्रकार था

"बिल्ली और दूध की रखवाली "

उसे पढ़ने के बाद दीन दयाल जी ने मानव से उस मुहावरें का अर्थ पूछा जो की उसे नही पता था और उसने अपने दादा से पूछा कि आखिर इस मुहावरें का अर्थ क्या है

दीना दयाल जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा " चलो कोई बात नही, मैं बताता हूँ इस मुहावरें का अर्थ

बेटा कभी कभी हम लोग किसी को अपना समझकर उसपर अंधा भरोसा कर बैठते है, और इस बात से अनजान की वो जैसा दिखता है वैसा होता नही है, लेकिन हम उस पर भरोसा करते है और वो इंसान मौका मिलते ही अपनी फ़ितरत के चलते हमें धोका देकर जाने से बिलकुल भी परहेज नही करता है, इसलिए ही हमारे बुजुर्गो ने ये कहावत कही है " बिल्ली और दूध की रखवाली, क्यूंकि बिल्ली को कितना ही लाड़ प्यार से पाल लो लेकिन उसे दूध की रखवाली करने को कभी भी नही दे सकते, वो अपनी फ़ितरत के चलते दूध पी ही लेगी


आओ इसे कहानी के माध्यम से समझते है


ये कहानी है, एक ऐसे आदमी की जिसे खुद से ज्यादा अपने छोटे भाइयो पर भरोसा था, दुनिया भले ही उनके बारे में जो कुछ भी कहती लेकिन वो कभी उनको कुछ नही कहता था,

जितना भरोसा वो खुद पर करता था उससे ज्यादा कही उन पर भी करता था, खुद भूखा रह लेता लेकिन उन्हें भूखा नही देख सकता था

इस तरह का था वो बड़ा भाई, जिस तरह के फर्ज़ एक बड़े भाई होने के नाते उसे निभाने चाहिए थे, वो उन्हें बखूबी निभाता था, लोग उसे समझाते भी थे कि इस तरह अपने छोटे भाइयो पर अंधा भरोसा ना किया कर, अब राम राज्य नही है जहाँ भरत और लक्ष्मण जैसे भाई होते थे,


ये कलयुग है, यहां कब क्या हो जाए कोई नही कह सकता, लेकिन वो भाई उन सब कि बातों को एक तरफा करके बिना सोचे समझें ही उन पर भरोसा किये फिरता था, उन कि गलतियों को नादानी का रूप देकर उन्हें माफ कर देता था


यही उसकी सबसे बडी भूल थी शायद और फिर एक दिन वो भाई उन पर भरोसा करके, कुछ दिन की लिए अपना सब कुछ उनके हवाले करके तीर्थ पर चला गया


उसे उसके दोस्तों ने समझाया भी था, कि इस तरह कि गलती ना कर, बिल्ली को दूध कि रखवाली पर नही छोड़ा जाता है, लेकिन उसने उनकी ना सुनी और ज़ब तीर्थ से वापस आया तो सब कुछ बदल सा गया था , उसकी आँखों के सामने ही उसकी पूरी दुनिया मानो उजड़ सी गयी हो


सब कुछ बदल सा गया था, वो घर जहाँ उसका बचपन उसके माता पिता के साथ गुज़रा था वो अब किसी और के हवाले था, वो ज़मीने जिन पर कभी उसके बेल खेत जोता करते थे वो अब किसी और के हवाले थे, चंद दिनों में क्या से क्या हो गया पता ही नही चला


उसके पास एक छोटा सा ज़मीन का टुकड़ा ही बचा था, जो कि उसने खरीदा था वरना तो सब कुछ बेच कर उसके भाई वहाँ से चले गए थे

उस दिन उसे अपने दोस्तों की बाते याद आ गयी, उसने अपना सब कुछ उनके हवाले कर दिया था और उन्होंने उसका भरोसा तोड़ कर चंद पैसे के लालच में उसका सब कुछ बेच दिया, सही कहते थे उसके दोस्त और गांव वाले की वो अपना सब कुछ गलत हाथो में सोप कर जा रहा है, बिल्ली को कभी दूध की रखवाली पर नही छोड़ा जाता उस दिन ये कहावत हकीकत बन उसके सामने पेश हो गयी थी

दीनदयाल जी की आँखों में नमी सी थी ये सब बताते हुए, उनका गला सा भर आया था वो खामोश हो गए

तब ही मानव बोल पड़ा "दादा आपने उनका नाम नही बताया, वो कौन थे क्या वो भी इसी गांव में रहते थे?"


दीन दयाल जी कुछ कहते तब ही दरवाज़े पर खड़ी उनकी पत्नि जो की सब सुन रही थी, अपने कमरे में आयी और बोली " चलो बेटा तुम्हारी मम्मी बुला रही है, दादा को थोड़ा आराम करने दो बाकी की कहानी बाद को सुनाएंगे "


"ठीक है दादी," मानव ने कहा और दादा दादी को गले लगा कर वहाँ से चला गया

दीन दयाल जी ने अपनी पत्नि की तरफ देखा और नज़रे नीचे कर ली


"जाने भी दीजिये अब, जो हुआ सो हुआ, वो एक बुरा वक्त था जो की अब जा चूका है, बार बार उसे याद करके अपने आप को तकलीफ देने से कुछ नही होने वाला, चलिए दवाई खा लीजिये " सुष्मा जी ने कहा


"ठीक कहा आपने, पुराने जख्म कुरेदने पर सिवाय तकलीफ के कुछ नही देते है, लेकिन मुझसे ये माना नही जाता की मेरे अपने, मेरे सगे भाई इस तरह का दग़ा करके चले गए थे और एक बार भी खबर नही ली कि उनका बड़ा भाई ज़िंदा है या मर गया, बस इस बात का दुख मुझे हमेशा होता है, जो होना था वो हो गया लेकिन एक बार तो अपनी शक्ल दिखा जाते, कम से कम मुझे तसल्ली तो हो जाती की वो ठीक है, या नही" दीनदयाल जी ने कहा


"जहाँ भी हो, जैसे भी हो ईश्वर जाने, आप बेवजह अपनी तबीयत ख़राब मत कीजिये ये दवाई खा लीजिये और आराम कीजिये खेत पर जाने की कोई ज़रूरत नही आज " सुष्मा जी ने कहा


"ठीक है, नही जाऊंगा, जैसा आपका हुकुम " दीनदयाल जी ने कहा और दवाई खा कर लेट गए


सुष्मा जी भी वही उनके पास लेट जाती है,




मुहावरों की दुनिया हेतु 

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5 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:29 PM

बहुत ही सुन्दर

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Mahendra Bhatt

13-Jan-2023 10:15 AM

बेहतरीन

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अदिति झा

12-Jan-2023 03:51 PM

Nice 👍🏼

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